
पोकरण शहर के मुख्य चौराहों और प्रमुख सड़कों पर इन दिनों एक अजीब दृश्य आम होता जा रहा है – आवारा पशुओं की भरमार। हालात ये हैं कि वाहनों से ज्यादा गाय, बैल और ऊँट नजर आते हैं।
नगरपालिका की अनदेखी से परेशान शहरवासी आए दिन इन जानवरों से चोटिल हो रहे हैं, और सड़क किनारे खड़ी महंगी गाड़ियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। आवारा पशु आपस में लड़ते हैं और कभी कभार राह चलते वाहनों से टकरा जाते हैं जिससे दुर्घटनाओं का खतरा लगातार बना हुआ है।
सुंदरता और विकास पर पानी फेर रहे जानवर
नगर पालिका द्वारा शहर की सुंदरता बढ़ाने के उद्देश्य से लगाए गए सड़क डिवाइडरों पर पौधे भी इन जानवरों का निवाला बन चुके हैं। मदरसे से लेकर फलसूंड रोड तक हर जगह यही स्थिति देखने को मिल रही है।
नगर पालिका ने लाखों रुपये खर्च कर आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए विशाल पिंजरे भी मंगवाए, लेकिन इनका उपयोग केवल मरु महोत्सव जैसे आयोजनों तक ही सीमित रहा है। शेष समय में ये पिंजरे शोभा की वस्तु बनकर रह गए हैं।
6 महीने से ‘नगर सर्वेक्षण’ कर रहा है एक ऊँट?
सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि पिछले 6 महीनों से एक ऊँट पोकरण की मुख्य सड़कों पर घूम रहा है, मानो वह पोकरण का निरीक्षण कर रहा हो। यह ऊँट न केवल लाखों के पौधों को खा चुका है, बल्कि शहर की यातायात व्यवस्था को भी बाधित कर रहा है।
लेकिन इस पर न तो नगर पालिका कोई कार्रवाई कर रही है और न ही वन विभाग। नतीजा – ऊँट बेधड़क शहर में घूम रहा है और पौधों, राहगीरों और वाहनों के लिए खतरा बना हुआ है।
क्या उठेगा कोई ठोस कदम?
अब देखना यह है कि पोकरण नगर पालिका और वन विभाग मिलकर इस ऊँट को किसी सुरक्षित स्थान पर भेजते हैं या फिर यह ऊँट यूं ही पोकरण की गलियों में घूमता रहेगा?
गौशालाओं पर भी उठ रहे सवाल
पोकरण शहर और आस-पास के क्षेत्रों में कई गौशालाएं संचालित हो रही हैं, और सरकार से गायों के नाम पर लाखों रुपए का अनुदान भी लिया जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद शहर की सड़कों पर आवारा पशुओं की भारी संख्या में उपस्थिति एक बड़ा सवाल खड़ा करती है – क्या ये गौशालाएं सिर्फ कागज़ों पर चल रही हैं? या फिर आवारा पशुओं की देखरेख में भारी लापरवाही बरती जा रही है?
नगर पालिका द्वारा न तो कोई ठोस कार्रवाई की जा रही है और न ही गौशाला संचालकों से कोई जवाबदेही तय की जा रही है। अगर गौशालाएं सही तरीके से काम कर रही होतीं, तो सड़कों पर इस कदर आवारा पशु नजर नहीं आते। ऐसे में स्थानीय प्रशासन और गौशाला प्रबंधन दोनों की भूमिका संदेह के घेरे में है।
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