
राजस्थान की तपती रेत और कठोर जीवनशैली के बीच एक आवाज़ उठी है — खींवरासर गांव की आवाज़। यह आवाज़ सिर्फ एक भूगोलिक सीमा बदलने के खिलाफ नहीं, बल्कि जनसंवेदनाओं, सामाजिक न्याय और प्रशासनिक उत्तरदायित्व की लड़ाई बन चुकी है।
📍 मुद्दा क्या है?
जैसलमेर जिले के राजस्व गांव खींवरासर को हाल ही में पुनर्गठित ग्राम पंचायत मानासर में शामिल कर दिया गया है। इससे पहले खींवरासर ग्राम पंचायत नेतासर का हिस्सा था। यह बदलाव राज्य सरकार द्वारा पंचायतों के पुनर्गठन की प्रक्रिया के तहत किया गया।
लेकिन यह कोई साधारण प्रशासनिक फेरबदल नहीं है। खींवरासर गांव के सैकड़ों लोगों ने इसे जबरन थोपे गए फैसले के रूप में देखा है। उनका कहना है कि इस निर्णय से पहले ग्रामीणों की सहमति नहीं ली गई, और यह फैसला राजनीतिक प्रभाव में लिया गया है।
🧭 भौगोलिक हकीकत और ग्रामीणों की आपत्ति
गांव के वरिष्ठ नागरिक जेठाराम गोयल कहते हैं,
“नेतासर से खींवरासर की दूरी महज 2 किलोमीटर है और एक पक्की सड़क हमें जोड़ती है। हमारे बच्चों की पढ़ाई, बुजुर्गों की दवाइयां, राशन और हर ज़रूरत नेतासर से पूरी होती है। अब हमें 5 किलोमीटर दूर रेत के धोरे लांघ कर मानासर जाना होगा, जहां तक जाने का कोई सीधा रास्ता भी नहीं है।”
उनकी बात को सुनकर यही समझ आता है कि यह बदलाव न तो तार्किक है, न ही व्यावहारिक।
🚨 अनुसूचित जाति बाहुल्य गांव — राजनीतिक भेदभाव?
खींवरासर अनुसूचित जाति बाहुल्य गांव है। ग्रामीणों का आरोप है कि इस पुनर्गठन के पीछे राजनीतिक मंशा छिपी है।
पूर्व जिला परिषद सदस्य छोगाराम मेघवाल स्पष्ट शब्दों में कहते हैं,
“भाजपा नेताओं ने जानबूझकर इस गांव को नेतासर से काटकर मानासर में शामिल किया है, ताकि अनुसूचित जाति के लोग परेशान हों। यह फैसला जातीय और सामाजिक भेदभाव को दर्शाता है।”
✊ ग्रामीणों की चेतावनी — भूख हड़ताल और अनिश्चितकालीन धरना
ग्रामीणों ने प्रशासन को साफ चेतावनी दी है कि अगर समय रहते यह फैसला वापस नहीं लिया गया, तो वे जिला कलेक्टर कार्यालय के बाहर भूख हड़ताल और अनिश्चितकालीन धरने पर बैठेंगे।
गर्मियों की यह तपती धूप, गांव की महिलाएं और बुजुर्ग — अगर इस विरोध में किसी को कोई नुकसान पहुंचा, तो ग्रामीणों ने जिम्मेदारी प्रशासन और सरकार पर डाल दी है।
📜 ज्ञापन और विरोध प्रदर्शन — लोकतंत्र की एक झलक
इस विरोध का नेतृत्व कर रहे स्थानीय लोग — छोगाराम मेघवाल, जेठाराम गोयल, मुकनाराम, अजाराम, खंगारराम, अचलाराम, अंबाराम, पपुराम और नारायण राम — इस बात के प्रतीक हैं कि ग्रामीण जनता अब चुप नहीं बैठती। वे जानते हैं कि लोकतंत्र में अपनी आवाज़ उठाना उनका अधिकार है।
🧭 क्या है रास्ता आगे का?
यह सिर्फ खींवरासर की बात नहीं है, यह सवाल है कि क्या पंचायत पुनर्गठन की प्रक्रिया जनभावनाओं को दरकिनार करके होनी चाहिए?
क्या किसी गांव की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति को बिना देखे सिर्फ राजनीतिक मानकों पर फैसले लिए जा सकते हैं?
प्रशासन के लिए यह समय है आत्ममंथन का। क्या वाकई यह निर्णय गांव के हित में है, या यह एक राजनीतिक प्रयोग मात्र है?
🌾 थार की आत्मा बोल रही है… क्या कोई सुनेगा?
राजस्थान की रेत में दबी आवाज़ें अक्सर देर से सुनी जाती हैं। लेकिन खींवरासर गांव की ये आवाज़ सिर्फ सुनने लायक नहीं, समझने लायक है। यह संघर्ष केवल एक गांव का नहीं, बल्कि ग्राम स्वराज, सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक भागीदारी का प्रतीक बन चुका है।
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